ये साँझ और लम्बी हो रही है
हवायें सब रुकी हुई हैं
बादलों ने मैदान की तरफ देखना शुरू कर दिया है
और टूटे हुये संगीत की आवाज़
नेपथ्य से सुनाई पड़ती है,
नहीं, सबको नहीं,
टूटना सबके लिये नहीं होता है;
एक मंदिर, जिसकी लकड़ी की दीवारों पर
पूँजीवाद के सिक्के लगा दिए गये हैं,
मैदान की पवित्रता पर आश्चर्यचकित हुआ;
दूर से राही आ-आकर लौट जा रहे हैं
शायद उन्हें सिद्धि प्राप्त हो गई है
पेड़ सब चुप खड़े हो गये हैं
दिन भर धूप में तपने का फल
उन्हें मिलने वाला था,
चट्टानों से तोड़कर लाये गये पत्थर
घेरकर मैदान को खड़े हो गये हैं
और समय को मैदान तक पहुँचने से रोक लिया है
अस्त होता हुआ सूरज भी धीरे हो चला है,
अभी मैदान में,
जिसके गले का पिछला भाग लाल है,
ऐसी गौरैया ने चरण बस धरे ही हैं।

अभी गौरैया का चहकना शुरू होगा
और उसकी प्रतिध्वनि में
सामने का वो पहाड़ झूम उठेगा।


Leave a Reply