रोज़मर्रा की बातों से अलग कुछ बात करते हैं
चलो आज बिना बात ही कुछ बात करते हैं।

क़िताबों के बीच वो अब भी महक उठता है
सूखा फूल जिससे कभी पुरानी बात करते हैं।

कभी इक रात में खो गयी थी बहुत सी बातें
लोग बेवज़ह ही नहीं चाँद से बात करते हैं।

तुम्हें यकीं नहीं था तो खुद कर के देखते
साहिल पे बैठकर मौज़ों की बात करते हैं।

तुम्हारी क़ुर्बानी से मुतासिर नहीं यहाँ कोई
लोग अब भी मीरा सुकरात की बात करते हैं।

उस एक नज़्म को सीने से लगा बैठे कब के
जिसके एक एक हर्फ़ इंक़लाबी बात करते हैं।

ज़माने को तो कर दिया है नाउम्मीद तुमने
यायावर चलो अब रूह से कुछ बात करते हैं।

मुतासिर - impress
साहिल - shore
मौज़ - waves
हर्फ़ - A letter of the Arabic alphabet