सुबह से शाम तक रोज़ी-रोटी की कहानी
दो पल में बीत गयी चार दिन की ज़िंदगानी

कुछ इस तरह भूला है खुदा मेरा मुझको जैसे
एहसान किया देकर चार दिन की ज़िंदगानी

कुछ ख्वाब में बीती तो कुछ बिना बात में
मेरे काम आई ना तेरे चार दिन की ज़िंदगानी

एक ही ढर्रे पर चल रही थी कई ज़िंदगियाँ
रवायत सी बन गई चार दिन की ज़िंदगानी

रोज अगले दिन की तैयारी में बीत गयी
'आज' मिली ही नहीं चार दिन की ज़िंदगानी

पहचान को तरसती रही कसमसाती रही
लेकिन चलती रही चार दिन की ज़िंदगानी

पीछे मुड़कर देखा तो सहसा याद आया कि
आगे दौड़ी जा रही थी चार दिन की ज़िंदगानी

महलों में गुज़री किसी की सड़कों पर लेकिन
बराबर मिली सबको चार दिन की ज़िंदगानी

क़ाबिल-ए-बयाँ कहाँ थे यायावर के सुखन
ज़िंदगी खोजती रही चार दिन की ज़िंदगानी