खिड़की के किनारे बैठकर
बारिश की बूंदों को देखने को
राष्ट्रीय शौक़ घोषित कर दिया जाना चाहिये
दीवारों के बाहर
वो फूलों के बाग़ जिन्हें देखकर
मन चहक उठता था,
वो अंतरिक्ष के पर्दे पर
चाँद और बादलों की आंख-मिचौलियाँ
जिनमें देखे थे हमने
भयावह शून्य के मानचित्र आसमान में
बहुत सम्भव है
कि सदियों पहले ऐसी ही किसी बात ने
सावन की नरम मिट्टी से रूप लिया हो
कितनी किंवदंतियों को जन्म दिया हो
हाँ,
सम्भावनायें शायद सिर्फ भविष्य में ही नहीं होती
भूतकाल में भी तो
हम सम्भावनायें खोज ही लेते हैं,
स्वप्न के आनंद में
हम खोजते रहते हैं
जीवन जीने के लिये नये खिलौने,
एक वातावरण
जो सिर्फ मेरी सोच भर में था
आनंदित करता रहा था।

सोचता हूँ
कि चीजें अगर अस्थायी न होती
तो भी क्या उनसे उतना ही लगाव रहता?
तो भी क्या इतने धैर्य से उनका साथ रहता?


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