किसी चीड़ और देवदार के जंगल में
मनुष्यों के विकल्पों से बहुत दूर
जब अकेले बैठकर सोचते होगे
कि मैं अगर इस मनुष्य के पास जाऊँ
तो क्या हासिल होगा
और तब वहाँ पर मनुष्यों की तुलना होती होगी
कि कौन अक्ष्क्षुण रूप से
जीवन जीने की परम्परा जीवित रख सकेगा
और तर्कों के वार चलते होंगे
तुम्हारे एकान्त की शांति भंग होती होगी
फिर सोचते होगे
कि मैं उद्देश्यों का इतना बड़ा भार उठा पाउँगा भी या नहीं
मुझमें कौन सी ऐसी बात है
जो तुम्हें निश्चिन्त कर सकती है
तुम किंकर्तव्यविमूढ़,
अनिर्णित रहकर जंगल को और घना बना देते हो
जहाँ से किसी उद्देश्य को कोई मनुष्य मिलेगा भी या नहीं
कहा नहीं जा सकता।

मेरे जीवन के उद्देश्य
तुम कभी अकेले में बैठकर
मेरे बारे में बहुत सोचते होगे।


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