मेरे इख़्तियार में नहीं हैं मेरी ईज़ाद की हुई बातें
थम गया हूँ मैं, बह रही हैं बनकर बयार ये बातें।

कभी वक़्त का रुख मोड़ देने का माद्दा रखती थीं
आज ख़ुद आवारगी में इस क़दर मानूस हैं ये बातें।

हाँ इनमें किसी के भी वाक़ये बयाँ नहीं होते हैं
किसी की ज़िन्दगी का आईना नहीं हैं ये बातें।

मेरे शौक़ में नहीं हैं बज़्मों के कहकहे या क़सीदे
मेरे सुकून के लिए हैं बिछड़ी नज़्में कुछ भूली बातें।

ये नई हवा नहीं है मत सोचो कि ये रुक जायेंगी
वज़ूद में तो कब से थीं, भले पोशीदा रहीं ये बातें।

क़ायम नहीं हो पाई थी जो वाइज़ की निगेहबानी
पाबंदियाँ लगाओ कहो गुनाहगार जो हैं ये बातें।

और कहो कि यह सही नहीं है कि फैलें ये बातें
मैं मुतमईन हूँ कि तुम्हें असहज कर देंगीं ये बातें।


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