ये तराशे हुये खम्भे
और उन पर रखे हुये भारी पत्थर
जिन्हें छूकर कभी लोग
चन्द लम्हों की ख़ुशी पा जाया करते थे,
वक़्त के किसी हिस्से में
क़ैद कर दिए जाने से
कुछ नाराज़ से दिखते हैं।

कुछ अवशेष
पुरातत्व विभाग की सलाखों के पीछे
सहमे खड़े हैं
सलाखों के पीछे वज़ूद दिखता नहीं है
सलाखें हटीं तो वज़ूद मिट जायेगा
इसी उधेड़बुन में
ये पत्थर सदियाँ बिता देंगे।

लेकिन कभी भूले-भटके से
कोई केशकंबली अगर यहाँ आ पहुँचे
और असाध्य वीणा के तार झंकृत कर दे
तो ये पत्थर, ये अवशेष
तवारीख की गिरफ्त से आजाद हो उठें।

तवारीख - history.


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