मेरे सामने अब मुझसे अलग कोई नहीं है
मैं ही किसी और रूप में
अपने सामने विद्यमान हूँ।

कभी किसी तो किसी विचारधारा का
मुखौटा लिये
मैं खुद से ही लोहा ले रहा हूँ
मैं समय के किसी और भाग के
अपने आप से मुखातिब हूँ,
और एक-दूसरे की हालत पर
मेरे दोनों रूप सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं
और खुद को ही झुठला रहे हैं।

वह जो एक पतली सी परत थी
किन्हीं मतभेदों की
जो कि मुझको मेरे सामने के किसी और रूप से
मुझको अलग करती थी
मैंने भेद ली है,
और उस शख्स में
मैंने खुद को ढूँढ़ लिया है,
और उसको मेरे मन से गुजरने का न्यौता भी दिया है।

किसी क्षण में तल्लीन
विलीन होकर मेरे रूप आपस में उलझ रहे हैं,
लेकिन वह सब मैं ही हूँ
मेरे सामने अब मुझसे अलग कोई नहीं है। 


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