लहरों का बुलावा जानलेवा था
मेरी अपनी समझ कुछ कच्ची थी
अगर मैं सब कुछ जान लेता
तो भी मैं क्या करता,
दुनिया की परतें अंजान थीं
अंजान का आकर्षण था
दुनिया को अपने से अलग कर पाता
तो शायद लहरों को सही-सही देख पाता,
सारी लहरें किनारे आकर पत्थर से नहीं टकराती
कुछ बीच समन्दर में ही दम तोड़ देती हैं
किनारे पर बैठकर देखता हूँ
सफ़ेद झाग कहीं-कहीं समन्दर में
फैलते हैं बिना किसी पैटर्न के,
लहरें हवा की बात मानकर
किनारे की तरफ़ बढ़ती हैं
पत्थरों से उनकी टक्कर भयावह थी,
लहरों का बुलावा जानलेवा था।

हवा की गूँज कर्कश थी
(सिर्फ़ मेरे मानने से
हवा कर्कश हो जायेगी?
विशेषण सापेक्ष हो सकते हैं)
तट पर फैले हुये झोपड़ियों के झुण्ड में से
पीले तिरपाल से ढकी हुयी
एक नारियल की दुकान है
और कातर दृष्टि से देखती हुयी
उसकी बूढ़ी मालकिन
खोजती है झोपड़ी में रस्सियों को,
उसमें मृत्यु का, परलोक का कोई भय नहीं था,
भय था मात्र आज का, कल का,
हवा को भी वहाँ नहीं टिकना है
क्षणिक विजय लेकर आगे बढ़ना था,
और उस पुरानी झोपड़ी में
ढेर सारा जीवन भरा था
जीवन की साँस के लिये
हवा का हर एक झोंका ठोकर था,
लहरों का बुलावा जानलेवा था।

समन्दर की गहराई में भी खिंचाव था
('जिन खोजा तिन पाईयाँ' मुझे सिखाया गया है)
और उतरना समन्दर में
चट्टानों की बनी हुई सीढ़ियों से
और फिर खो देना सीढ़ियों को
सीढ़ियाँ थीं?
नहीं;
उतर जाना आसान था
इसीलिये मान लिया गया था,
और गहराई में खोजना फिर वही जीवन
जिसको त्याग दिया गया था
लेकिन जिससे मन अभी भरा नहीं था
खोजना फिर वही साँसों के कारण
निकलने वाले बुलबुले,
होना क्या था
और हो जाना क्या
यह हमें अभी तक ज्ञात नहीं था,
और हम खोजने निकले थे गहराइयाँ,
खोजने निकले थे वो
जिसे हम अपने ज्ञान से
ज्ञात श्रेणियों में बाँट सकें,
जो नया था उससे अनभिज्ञ ही रहना था,
होना सत्य है,
हो जाना लेप है? सचमुच?
गहराई का सन्नाटा निर्मम था,
लहरों का बुलावा जानलेवा था।

सूरज बहुत साधारण था,
बादलों से लड़कर शायद परेशान हो गया था
या कोई और गम्भीर वजह थी शायद?
अब, जबकि यह जान लिया गया है
कि सूरज नहीं है संसार के केंद्र में
और है मात्र एक औसत तारा,
रोज़ सुबह आना
और रोज़ शाम को जाना
नहीं है सूरज के नियंत्रण में,
या प्रार्थनायें पृथ्वी पर समृद्धि के लिये
नहीं सुनता है सूरज,
तो सूरज खो देता है
अपने सभी मानी
जो भी इसने बना रखे हैं रोज़ आने-जाने के,
नहीं, उद्दयेश्य की लड़ाइयाँ नहीं लड़ी जाती ऐसे
आरोपित कर दिये गये मानी
नहीं बता सकते हैं सत्य क्या है?
सत्य बदला जा सकता है?
सत्य काल पर निर्भर है?
आज जो सत्य है, कल भी रहेगा?
सवालों के बोझ से दबी हूयी
सूरज की किरणें थकी-हारी थीं,
लहरों का बुलावा जानलेवा था।

रेत की पकड़ ढीली थी
समन्दर पूरे उफान पर था
हवा ज़ोर-शोर से बह रही थी
और बह रहे थे एक-एक करके
रेत के बनाए महल
फिसल रही थी रेत धरती की मुट्ठी से
जैसे फिसलता है समय वर्तमान से,
पराजय?
पराजय नहीं है ये
क्षणिक युद्धविराम है
और क्षण हैं जिसके सदियों जैसे लम्बे,
उस क्षण में सिमटी हैं रेत आज बलहीन
युद्ध के मैदान में युद्ध के बाद की
क्षत -विक्षत अवस्था में,
लेकिन एक दिन
समन्दर में कुचली हुयी रेत उठ खड़ी होगी
टापू समन्दर के बीचों-बीच फिर खड़े होंगे
जय-पराजय फिर से नये परिभाषित होंगे
और समय हँस उठेगा
उस एक क्षणिक विजय पर भी
तब तक देखना है यही,
रेत की अवस्था दयनीय थी,
लहरों का बुलावा जानलेवा था।

रात की चमक फीकी थी
चाँद की चाल थकी सी थी
चमकीली लहरों को निहारना
जहाँ लहजा भी कुछ अनमना था,
और जबकि यह मालूम था
कि आज गर्व करने लायक जो कुछ भी है
(या घमण्ड करने लायक,
लड़ने के लायक)
सब समन्दर का ही दिया है
मोती, पानी, भोजन, वैभव
और यह भी कहा गया है
कि जीवन की उत्पत्ति भी समन्दर से ही हुयी है;
यह मालूम होने के बाद भी
यह लगता था
कि समन्दर बस क्षय कर सकता है,
आओ, समन्दर फिर से देखते हैं
ये लहरें किसी दूर देश की प्रतिनिधि हैं
जो लाती हैं अक्षुण्ण रहस्य
और विलीन हो जाती हैं;
संदेशवाहक किसी नयी दुनिया के?
हम भी स्थायी नहीं हैं,
संदेशवाहक प्रकृति के?
गर्व करने लायक हर एक बात
याद करके ढीली छोड़ दी गयी
रात बहुत निष्ठुर थी,
लहरों का बुलावा जानलेवा था।

लहरों का बुलावा जानलेवा था
समन्दर के पार की दुनिया बहुत चमकीली थी
(चकाचौंध से खींचने वाली चमक)
तूफ़ानों के किससे बहुत भयावह थे
तलहटी में दूबे हुये जहाज़
दुस्साहस के उदाहरण थे,
जीवन रेत पर बैठा हुआ था
पानी में पैर भिगोये हुये
क्या देख सकता था?
रंग-बिरंगी सीपियाँ,
कहीं-कहीं बिखरे थे मोती,
काल के किसी कोने में गिरे होंगे
जीवन का इंतज़ार करते होंगे,
सोच सकने वाली हर एक बात
कही-सुनी जा चुकी होगी
हिदायतें जितनी भी इतिहास दे सकता है
जीवन ने पढ़ ही ली होंगी,
जीवन को मोती खोजने जाना ही पड़ेगा
और देखना होगा
पानी में डूबे पत्थर के क़िलों को
जिनमें चस्पा हैं समय के अट्टहास,
जीवन समय से आगे निकल चुका है
जीवन समय से पिछड़ गया है,
जीवन समय के साथ क़दम-ताल मिला रहा है,
सब कहीं न कहीं सच हैं
(अज्ञानता बहुत आकर्षक थी)
लहरों का बुलावा जानलेवा था।


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