समन्दर से खींचकर
किनारे पर लगा दी गयी नाव को
जैसे जीवन से उठाकर
मृत्यु के दर्शन दे दिये गये हैं,
लकड़ी के पटरे
जिन्हें लहरों की गति नापने की आज़ादी थी
आज रेत की शय्या पर बैठकर दिन जाया करते हैं
और समय ने कई बार देखा है
कि एक-एक करके ये लकड़ियाँ
गायब होती चली जाती हैं,
धूल की परतें
नाव का जीवन धूमिल कर देंगी
कभी-कभी कुछ लहरें नाव तक पहुँच जाती हैं
और ऐसी आवाज़ होती है
जिसे बड़ी तड़प में ही शायद सुना गया है
जीवन का एक टुकड़ा मिलते ही
नाव बिलख उठती है
जिसके आँसुओं को समीर बिखरा ले जाती है।

पर क्यों,
नाव को समन्दर में ही क्यों जाना है,
और कोई तरीका नहीं निकाल सकती क्या ये नाव
समय में विलीन होने का?
जलाने के लिये लकड़ियाँ,
बच्चों के लुकाछिपी खेलने का स्थान,
यात्रियों के लिये चित्र लेने का स्थान
जिसके पार्श्व में सूर्यास्त सावधानी से लगाया गया हो,
कितने सारे कार्य हैं
जिनमें नाव उद्देश्य पा सकती है,
लेकिन खोज पाती नहीं हैं।

और यह मात्र देखकर जाना नहीं जा सकता
कि ये नाव
समन्दर में जाने की आदी क्यों हैं।


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