एक दिन हम नहीं बोलेंगे
या तो बंदूकें हमारे लिये बोला करेंगी
या बंदूकें हमारी ज़ुबान छीन चुकी होंगी।

एक दिन जब हमारे तुम्हारे मतभेद बहुत बढ़ जायेंगे
विचारधारायें जो वैसे तो सिंहासन से उतरती नहीं हैं
लेकिन हमको दूर करने उतरेंगी
और हम एक दूसरे को सुनने की जगह
अपनी बातें सुनाते रहेंगे
इसके बाद भी अगर मतभेद दूर नहीं होते हैं
तो हम बंदूकें चलाकर तुरंत मतभेद हल कर लिया करेंगे।

एक दिन विरोध के तरीके बहुत बदल जायेंगे
ये भाषण, ये लेख, ये सभायें
ये पैम्फलेट, ये गोष्ठियाँ
ये सभ्य मानवों के वार्तालाप
हमारे विरोध को जताने में नाकामयाब रहेंगी
ये मतभेदों का सम्मान जैसी बातें हवाई लगने लगेंगी
तब हम बंदूकें उठाकर अपना विरोध जता देंगे।

एक दिन बंदूकें जिंदगी बहुत आसान कर देंगी
तब जो सुनने में असहज लगता है
उसे आसानी से चुप करा दिया जायेगा
जो लोगों से अभी करा पाना मुश्किल है
तब वो भी करा लिया जायेगा
एक दिन हम सम्मेलनों की मेजों पर
बंदूकें भेज दिया करेंगे
जिनकी बंदूकें ज्यादा आधुनिक होंगी
वो अपने पक्ष में फैसले लिवा लायेंगे।

(गौरी लंकेश, पंकज मिश्र, राजदेव रंजन, कलबुर्गी, रुद्रेश,  पानसरे, लक्ष्मणानंद सरस्वती, दाभोलकर, सन्दीप कोठारी और वैचारिक मतभेद में मारे गये अन्य अनेक अनाम लोगों के नाम।)


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