मैंने कहीं पढ़ा था
कि किसी कविता को पढ़ते हुये
विचारों की एक ही श्रंखला से
दो व्यक्तियों का गुजरना
और भावनाओं की लहरों में
अपने समझबूझ की नाव पर बैठकर
एक ही तरह से हिचकोले खाना,
किसी आत्मीय को
शब्दों के माध्यम से ढूँढ़ लेने जैसा है
और मैंने सोचा था
कि शब्दों का यह जोड़
जिसके मतलब अनगिनत, अनिर्धारित होते हैं
उसमें किसी एक ही कल्पना के
दो मन में एक साथ आ जाने की सम्भावना
न के बराबर होती है,
उस स्थिति में
हमें एक कविता की कुछ पंक्तियों के
मानी मिले हैं एक जैसे,
असंख्य किताबों की असंख्य कविताओं में
एक वो कविता है
जो कहीं दूर से
धीरे-धीरे
हमारी आत्माओं में घुलने लगी है।


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