"इधर कुछ दिनों से सूरज नहीं निकला है
मैं बेचैन हो गया हूँ
ताज़्ज़ुब इस बात का है
किसी को इस बात से फ़र्क़ नहीं पड़ता है,
सूरज?
अरे नहीं! Satellite से देखा गया है
मौसम विभाग ने बताया है
आसमान साफ़ हो जायेगा कुछ दिनों में
अजीब लोग हैं
सूरज देखने के लिये नहीं उठते हैं,
ख़ैर छोड़ो, तुम अपने शहर का मौसम बताना।"

"हवा उस दिन भी बहुत तेज थी
हर तरफ़ उड़ रहे थे काग़ज ही काग़ज
और लोगों की भीड़ दौड़ती थी
कागज़ों को पकड़ने के लिये
कभी बादल का आँसू कोई गिर उठता
तो काग़ज नम होकर वहीं बैठ जाता
दफ़्न होने के इंतज़ार में
हवा रगड़ खाती थी शब्दों से
और पूरा माहौल गरम हो उठता था
उबलने लगती थी यथास्थिति,
उस दौर की बातें भी अब विश्वसनीय नहीं हैं
मैं अब कागज़ों के पीछे दौड़ने लायक उम्र में नहीं रहा हूँ
एक खाली पार्क की बेन्च पर बैठकर
कई दशक पहले की बात लिख रहा हूँ
अब मुझे डर है
कि विद्रोह नहीं कर पाउँगा।"

"ज्यादा कुछ लिखने के लिये नहीं है
इतना जान लो
कि कुछ लिखने के लिये न होते हुये भी
एक खाली पोस्टकार्ड
तुम्हारे पते पर भेज रहा हूँ,
परम्परायें बाँध देती हैं, तुमने कहा था
लो, मैं एक नयी परम्परा खड़ी करता हूँ
बँधना या न बँधना
तुम्हारा फैसला है।
(बाहर बर्फ़ गिरने लगी है
जिस घर में मैंने शरण ली है
वहाँ मेरे पास करने के लिये कुछ नहीं है
सोचा तुम्हारे लिये एक ख़त लिखूँ।)"

"पहले लकड़ी की शाखायें काटी जाती हैं
हरी होती हैं
फिर सूखकर धीरे-धीरे सख़्त हो जाती हैं
फिर उनमें आग लगाई जाती है
बहुत आँच उठती है
चारों ओर खड़े लोगों के
चेहरे साफ़ देखे जा सकते हैं,
सुबह वहाँ बस राख का एक ढेर था,
जिसे दोपहर तक
किसी एक गड्ढे में फेंक दिया गया था;
मैंने ज़िंदगी को
इसी ढाँचे में रखकर देखा था,
तुम अपने आग वाले पड़ाव के बारे में लिखना।"

"ख़त लिखने से पहले
बहुत कुछ याद करना चाहता हूँ
और जब इस बारे में सोचता हूँ
तो यह लगता है
कि ‘याद' सिर्फ़ वही होता है
जिस पर हमने बात की थी कभी
या जो बात करने लायक घटनायें थीं,
‘याद' सिर्फ़ उसे ही कहा जा सकता है
जो घटनायें हमने साझा की थी,
ऐसी बहुत सी चीज़ें थीं
जो हमने अलग-अलग जिया था
उसे मैं यादों के रूप में तो नहीं लिख सकता
उसे कुछ और नाम दूँ -
अनुभव, घटना या कल्पना,
या फिर ऐसी यादें ही कह दी जायें
जो दहलीज़ के पार नहीं जा पायीं।"

"तालाब के किनारे एक बड़े मैदान में
पतंग उड़ाने जाता हूँ
कल शाम को क्षितिज के आसपास
चाँद बैठा था,
मैंने पतंग के कोनों से उसे खुरच दिया था,
और आज
पतंग समेटते समय
चाँद भी उसी में फँसकर चला आया था
उसे मैंने खिड़की पर सजाकर रख दिया है
और उसकी रोशनी में ये ख़त लिखा है
तुम्हारी पतंग क्या लेकर आती है
तुम इस बारे में लिखना।"

"तुमने ख़त में बहुत कुछ लिखा था
और मैंने वो सब समझा था,
दर्शन, राजनीति, संसार सब
ज़िंदगी से तुम्हारा सामना
लेकिन ऐसा बहुत कुछ था
जो नहीं लिखा गया था
लेकिन मैं तुम्हारी लिखावट से
अन्दाज़ लगा रहा हूँ
अक्षर सही नहीं बैठ रहे हैं
जैसे कोई आपाधापी हो,
अगर कोई बात हो तो अगले ख़त में लिखना।"

"तुमने लिखा था
कि साहित्य वही अच्छा लगता है
जो जिये जा रहे जीवन से दूर होता है
जिसमें होता है एक खिंचाव
उस काल्पनिक जीवन की तरफ़
जिसको न पा सकने की स्थिति में
खिंचाव बढ़ता ही चला जाता है
और एक दिन इतना दूर हो जाता है
कि उसे हम आदर्श मान लेते हैं;
किसी विचार का पहुँच से दूर होना
आदर्श होने के पहली कसौटी है;
मैंने इस बात पर सोचा है
और यह पाया इसका उल्टा भी सच हो सकता है
कि साहित्य जिये जा रहे जीवन से
दूर भी कर सकता है।
जीवन जैसे जीना है
जीवन जैसे जिया जा रहा है-
दोनों में एक schism है।"

"बहुत मुमकिन है
कि यह ख़त तुम तक न पहुँचे
लेकिन इसका यह मतलब नहीं
कि ख़त लिखा ही न जाये
हो सकता है कि अभी तक
खतों की पंक्तियाँ
काली स्याही से पोतकर छिपा दी जाती हों
ख़तों को खोलकर पढ़ा जाता हो,
उनको गंतव्य तक भेजने के पहले
यह भी हो सकता है
कि अतिसंवेदनशील मानकर
ख़त को वहीं नष्ट कर दिया जाता हो
फिर भी हम ख़त लिखा करेंगे
(विरोध के लिये ख़ाली ख़त भी)
क्रांति की आग में लकड़ियाँ डालना है
ख़त लिखना होगा।"

"और तुम ख़त में लिखो
साधारण सी बातें, मैं पढ़ूँगा,
तुम लिखो चढ़ी हुई साँसों के साथ
क़दमताल करती हुयी तेज़ धड़कनें,
बारिश के बाद धुली हुयी सड़कें
शांत हो गए पेड़
सड़क पर बिछे हुये
पीली रोशनी में चमकते हुये
अमलतास के पीले फूल
लगता है जिन्हें कोई सड़क पर सजाकर छिप गया हो,
तुम लिखो ज़िन्दगी पर कोई उद्दंड नज़्म,
किसी पगडण्डी की कोई खोई मंज़िल,
सभ्यता की दो धारायें फाँदता हुआ कोई जर्जर पुल,
गेहूँ के खेत में खिले हुये सरसों के पीले फूल,
रेसनिक-हैलीडे के लेक्चर,
कच्ची उम्र के कच्चे क़सीदे,
Led Zeppelin IV के सुरों की समीक्षा,
सूर्य-ग्रहण जो ताज़्ज़ुब से देखा गया था कभी,
तुम लिखो पागलपन, आवारागर्दी,
ग़ैर-ज़िम्मेदाराना हरकतें,
यह यक़ीन दिलाया जा सकता है
कि इतिहास के दस्तावेज़ों में
इन ख़तों का कहीं कोई उल्लेख नहीं होगा।"


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