उजालों की दुनिया से कोसों दूर
नुकीले पहाड़ों से टँगी एक घाटी में
अँधेरी रात के पर्दे में
छोटे-छोटे, लाखों-करोड़ों हमसफ़र मौज़ूद हैं
जहाँ से प्रकाश हम तक पहुँचने में
सदियाँ लगा देता है
(कुछ उससे भी दूर हैं)
जिन्हें देखा है
परियों वाले नाट्यमंचन में
मंच के पीछे पर्दे में
कई कोनों वाली
कार्डबोर्ड की चमकती आकृतियों में,
ऐसे तारों को देखना
सच्चाई के आमने-सामने खड़े होने जैसा है,
वो विशाल तारे भी हैं
जो आसानी से
सैकड़ों ये सौर-मण्डल लील जायें,
ऐसे तारों से बनी हजारों आकाशगंगायें हैं,
जहाँ सुपरनोवा जैसी घटनायें
चलती रहती हैं कई-कई उम्र तक,
अब आकाशगंगाओं के समूह भी पहचान लिये गये हैं
इन समूहों के समूह भी विचरते रहते हैं
दूर-दूर तक परिभाषाओं को खींचते हुये,
यह विराट का चित्र है
जिसमें एक मनुष्य नाम की संरचना को
कहीं खोजा नहीं जा सकता है,
कभी-कभी
अपने अस्तित्व का सही-सही आँकलन करना
जरुरी हो जाता है
तब चकाचौंध से दूर
रात के आकाश को एकटक निहारने
किसी निर्जन जगह जाना होता है।


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