खण्डहर ऐसे ही थोड़े बनते हैं
एक मज़बूत इमारत ऐसे ही थोड़े ग़ायब हो जाती है,

तथ्यों की एक-एक ईंट जोड़कर
उसने एक मज़बूत नींव बनायी होगी
तमाम भट्ठों की
अच्छी से अच्छी, जाँची-परखी हुई तथ्यों की ईंटें
जिन्हें बनाने में किन्हीं कारीगरों ने
सैकड़ों साल लगा दिए होंगे,
फिर उस नींव को
मुख्यधारा रूपी ज़मीन के नीचे
दबाया होगा
और विचारों की इमारत खड़ी की होगी
पहली बार में अगर अच्छे से न बना हो
तो उसने लच्छेदार भाषा का लेप भी लगाया होगा
आने-जाने वाले लोगों ने
उस इमारत की बहुत तारीफ की थी,

लेकिन विचारों की बस इमारतें ही नहीं होती हैं
विचारों की आँधियाँ भी होती हैं
चिन्तन के उच्च दबाव वाले क्षेत्रों से उठने वाली ये आँधियाँ
रास्ते में आने वाली विचारों की इमारतों को
धराशायी कर देती हैं,
तमाम आंदोलनों की, तमाम वादों* की ये आँधियाँ,
उसकी भी इमारत बच नहीं पायी थी
नींव अभी भी बची थी
तबाही की दास्ताँ सुनाने के लिए,
मजबूत थी या शायद ओझल थी,

ऐसी इमारतें हर रोज़ कहीं पनपती हैं
और खण्डहर बनकर रह जाती हैं,
शायद तुमने भी दो पैरों पर
चलते-फिरते खण्डहर देखे होंगे, अदीब?

*(वाद - ism)


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