चलते चलते लहरें सहसा रुक गईं
तेज चलती हुई हवा थम गई चुपचाप
आपस में गुँथे हुये सब पहाड़
ढीले होकर देखने लगे आकाश
उड़ते हुए रेत के कण किनारे से देखने लगे
रास्ते सब मुड़कर आने लगे झील की तरफ़
चहकते हुये जीवों की सब बोलियाँ छीन ली गईं
और तब उस क्षण झील की एक लहर जागृत हुई।

और सोचने लगी
कि क्या जन्म और पुनर्जन्म की व्याख्या उसके लिए भी है
क्या किनारे के पत्थरों से बार-बार टकरा जाना
पिछले जन्मों का परिणाम है
या आगे आने वाले जन्मों के लिए एकत्र की जा रही जमा पूँजी है,
क्या उसका मचलना,
उसका सूरज की किरणों में नाचना,
ये सब वह खुद कर रही है
या कर्ता कोई और है, वह बस निमित्त मात्र है,
उसको यह भी जिज्ञासा हुई
कि उसके जीवन की समीक्षा कैसे होगी
रोज एक ही कार्य निर्विकार रूप से करने पर,
निरंतरता के लिए प्रशंसा होगी
या बार-बार दोहराने पर
मौलिकता के अभाव के लिए आलोचना होगी।

उसने अपने चारों तरफ देखा
और खुद से पूँछा
कि क्या वह सुन्दर दृश्य में बिंध जाने के लिए
पहले से तय एक भूमिका निभा देने के लिए ही है बस?
कभी खुद तय करके किसी धारा में बह पायेगी वह?
उसे पहाड़, हवा, रास्ते, रेत के कण
सब की दिनचर्या अपने जैसी लगी
और उनसे उत्तर पाने की उम्मीद खोकर
वह और भी निराश हो गई।

इन गूढ़ प्रश्नों के उत्तर लहर को
न मिलने थे और न मिले,
रास्ते फिर चलने लगे दिशाहीन
जीव फिर से आवाज पा गए और निरर्थक कुछ कहने लगे
पहाड़ों ने फिर से लहरों को घेर लिया
रेत के कण फिर उड़ने लगे तमाशा समाप्त देखकर
हवायें फिर से पगलाकर सरसराने लगीं
और लहरें फिर चल पड़ीं होकर उदास।

मगर चलने के पहले
एक लहर मेरे पास आ गई
और तपाक से बोली,
"तुमने फिर से मुझमें अपनी छवि खोज ली न ?"


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