एक महानुभाव से बात करते करते
बातचीत कुछ गलत दिशा में
चली गई
वे कहने लगे
कि कुछ लोग सदियों से
चली आ रही परम्पराओं को मानते ही नहीं
हर बात पर सवाल करके
अवज्ञा करने के बहाने ढूंढते हैं
बिना किसी बात का कारण जाने
परम्पराओं को रूढ़ियाँ कह देते हैं
ये आवारा होते हैं।

कि कुछ लोग
समाज की मशीन में
एक पुर्जे की तरह
फिट होने की बजाय
मनुष्य के अस्तित्व पर ही
सवाल खड़े कर सकते हैं
और अन्य कई होनहार लोगों को
जिनसे कुछ उम्मीद बाँधी जा सकती है
उनको अपनी चपेट में ले सकते हैं
ये आवारा होते हैं।

कि कुछ लोग
ओल्ड मांक की बोतलों के साथ
पिंक फ्लॉयड के गानों को सुनते हुए
समझते हैं कि वे
संगीत सुन रहे हैं
इस हाथ से जाती हुई पीढ़ी को
देखकर ही कह सकता हूँ
ये आवारा होते हैं।

कि कुछ लोग
समाज की प्रधानता के बजाय
व्यक्ति की प्रधानता पर
बल देने लगे हैं
अपनी संस्कृति की,
मूल्यों की,
भाषा की अवहेलना करने वाले
ये आवारा होते हैं।

फिर उन महानुभाव ने कहा
अरे बेटा!
तुमने बताया नहीं
तुम करते क्या हो?
मैंने कहा,
वही, आवारागर्दी।


Leave a Reply