क्योटो गाँव की तरफ, स्पीति घाटी में।
क्योटो गाँव की तरफ, स्पीति घाटी में।
एक बार फिर
पत्तियाँ पीली पड़ती पड़ती गिर जाएँगी
पंखुड़ियों के खुलते खुलते कलियाँ फूल बन जाएँगी
फल पककर गिर जायेंगे, कुछ नए पौधों को जन्म देंगे
छोटे छोटे पौधों के तने बारहसिंगा के सींगों की तरह फैलकर पेड़ बन जाएँगे
एक बार फिर
पानी पत्थरों को बहाते हुए गोल कर देगा
नदियाँ पहाड़ों को काटकर घाटियां बना देंगी
दूर से बहकर आती हुई दो नदियाँ आपस में मिल जाएँगी
पहाड़ से सागर तक नदियाँ ठीक ऐसे ही सदियों तक बहती रहेंगी
एक बार फिर
सूरज उस पहाड़ के पार से आकर
इधर पीछे वाले पहाड़ के पार जाकर
अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेगा
हवाएं मिटटी के पहाड़ों की एक परत गिराकर विजय ध्वनि करेंगी
एक बार फिर
चरवाहे झुण्ड को हाँकते हुए पहाड़ चढ़ेंगे
सुनाने के लिए कहानियाँ और गुनगुनाने के लिए गाने होंगे
कोई विद्रोही पशु झुण्ड से दूर नदी के पास चला जायेगा
फिर सारे पशु उसके मार्गदर्शन में पगडण्डी से दूर दूर चले जायेंगे
एक बार फिर
कोई गाड़ी नीचे के घुमावदार रास्तों पर आएगी
कई पर्यटक किसी झरने के पास उतर जायेंगे
कई कैमरे दृश्यों को जकड़ लेने में जुट जायेंगे
कई पर्यटक तरह तरह की अवस्थाओं में कैमरे के सामने आ जायेंगे
एक बार फिर
कल कई और यायावर यहाँ आएंगे
जीवन के मर्म को समझने के लिए
जीवितों के केंद्र से बहुत दूर यहाँ आ जायेंगे
एक बार फिर
कल कई और यायावर
फेफड़ों में ठंडी हवा के कारण
अपनी सांस को अनुभव करेंगे
मुट्ठियाँ भींचेंगे
तो धारा को मोड़ देने की शक्ति जानेंगे
दृष्टि जाएगी जब
तो चाँद तक पहुँच जाएगी
पग उठेंगे
पहाड़ चढ़ जायेंगे
ठन्डे मरुस्थल में जब कोई मनुष्य कहीं दूर तक नहीं दिखेगा
तब अपने अस्तित्व को जानेंगे, एक बार फिर
शहर की आपाधापी से दूर का एक अस्तित्व
हर जगह दौड़ते रहने से दूर का एक अस्तित्व
पंक्तिबद्ध हो प्रतीक्षा करते रहने से दूर का एक अस्तित्व
भयभीत होकर ईश्वर के समक्ष नतमस्तक रहने से दूर का एक अस्तित्व
एक बार फिर
कल कई और यायावर
आएंगे अस्तित्व की खोज के लिए
जो असाध्य है और जो साध्य है, उसे स्वयं करके देखने के लिए
जो प्राप्य है और जो अप्राप्य, उसकी प्राप्ति के लिए
जो धरातल है और जो शिखर है, उसके अंतर को नापने के लिए
जो भूत है और जो भविष्य है, उस अंतराल की समय यात्रा के लिए
जो क्षम्य है और जो अक्षम्य, उसमें लिप्त होने के लिए
जो पुरातन है और जो नूतन है, उसमें खोई कड़ी तलाशने के लिए
जो ज्ञात है और जो अज्ञात है,
जो असतत है और जो अविरल है,
जो क्षुद्र है और जो विराट है,
जो श्वेत है और जो श्याम है,
जो क्षणभंगुर है और जो स्थायी है,
जो निम्न है और जो उच्च है,
जो प्रत्यक्ष है और जो परोक्ष है,
जो है और जो होगा, उस सबको मिलाने के लिए
कल कई और यायावर आएंगे
और कहेंगे
मैं हूँ,
मैं हूँ,
एक बार फिर।

(प्रस्तुत कविता अज्ञेय जी के यात्रा वृत्तांत 'अरे यायावर! रहेगा याद' में उनके द्वारा लिखी गई एक कविता से  आंशिक रूप से प्रेरित है। हिंदी साहित्य जगत में यात्रा वृत्तांत विधा केअग्रणी लेखकों में से एक अज्ञेय जी की ये पुस्तक अवश्य ही अनुशंसा के योग्य है । )


Leave a Reply