देखना और दिखना,
क्या एक ही बात होती है?

यूँ ही नहीं मान लेना चाहिये
कि मैं और तुम किसी बात पर सहमत हैं
बिम्ब तुम्हारे हैं
और मानी मेरे हैं
परिदृश्य तुम्हारे हैं, कहानी मेरी है
हवा तुम्हारी है, संगीत मेरा है
और देखा जाये तो
अर्थपूर्ण तुम्हारा है ही क्या?

तुमने मुझे आकाशगंगा दिखाई
मैंने वहाँ देखा कृत्रिम प्रकाश से दूर
एक गाँव का बचपन,
तुमने मुझे सबसे ऊँचे गाँवों में से
कुछ एक दिखा दिए
मैंने देखा वहाँ जिजीविषा
प्रकृति के सामने खड़े होने का दुस्साहस,
तुमने मुझे घाटी में
टूटी हुई पगडण्डियाँ दिखाईं
मैंने वहाँ देखा
वैश्विक नाट्यमंच की टूटी हुई कड़ियाँ,
तुमने मुझे लाल-सफ़ेद रंग के घर दिखाये
मैंने उनमें खोजे
किसी दूर देश के वास्तु के खोये हुये उदहारण।

मैंने वहाँ वह नहीं देखा
जो दिख रहा था,
मैंने वहाँ वही देखा,
जो मैं देखने गया था, स्पीति।


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