ये जो खण्डहर हैं
जिन्हें हम इतिहास का साक्षी कहते हैं
अगर देखा जाये तो
इन्होंने इतिहास को देखा ही नहीं है
बल्कि उसमें लिप्त रहे हैं
किसी घटना का साक्षी होने के लिये
यह जरूरी है
कि तटस्थता बनी रहे,
इतिहास के महिमामण्डन में
इन पत्थरों का हित भी सम्मिलित है,
विसंगति यह है
कि इतिहास हम इनसे पूछते हैं।

तो इतिहास के निर्माता
हम स्वयं ही हैं
ये धारणायें इन खण्डहरों को हमने दी हैं,
कल कोई नयी विचारधारा हावी होगी
तो इन पत्थरों पर नये अर्थ आरोपित कर दिये जायेंगे।


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