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Aug 29, 2017

रात - 2

खुली हुई किताब है
जिसके आधे पन्ने में
तुम्हारी पसंदीदा कविता का एक टुकड़ा फैला हुआ है,
मोमबत्ती धीरे-धीरे मद्धम होती हुई
बुझने की तरफ अग्रसर है,
मेज़ के कोने से मोमबत्ती की रोशनी गिरती है
और समा जाती है पूरे कमरे में,
चौंककर रात तड़प उठती है
रात को फिर से शुरू होने का मौका देते हुये
दरवाज़े खोल देता हूँ
दूर किसी मंदिर की आखिरी आरती के घण्टे बज रहे हैं,
दूर गाड़ियों की आवाज़ से पता चलता है
कि शहर अपनी ज़िन्दगी जी रहा है,
सुस्ताया हुआ सा एक लैंप
सड़क को पीली रोशनी से नहला देता है,
ऐसा लगता है
कि मौसम का एक किनारा कुछ नया हो गया है।

शायद,
सोने से पहले
रात एक बार तुमसे टकरा गयी है।

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