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Jan 28, 2017

हम्पी - 2 / तवारीख की गिरफ्त

ये तराशे हुये खम्भे
और उन पर रखे हुये भारी पत्थर
जिन्हें छूकर कभी लोग
चन्द लम्हों की ख़ुशी पा जाया करते थे,
वक़्त के किसी हिस्से में
क़ैद कर दिए जाने से
कुछ नाराज़ से दिखते हैं।

कुछ अवशेष
पुरातत्व विभाग की सलाखों के पीछे
सहमे खड़े हैं
सलाखों के पीछे वज़ूद दिखता नहीं है
सलाखें हटीं तो वज़ूद मिट जायेगा
इसी उधेड़बुन में
ये पत्थर सदियाँ बिता देंगे।

लेकिन कभी भूले-भटके से
कोई केशकंबली अगर यहाँ आ पहुँचे
और असाध्य वीणा के तार झंकृत कर दे
तो ये पत्थर, ये अवशेष
तवारीख की गिरफ्त से आजाद हो उठें।

तवारीख - history.

Jan 20, 2017

मेरे सामने एक शख्स

मेरे सामने अब मुझसे अलग कोई नहीं है
मैं ही किसी और रूप में
अपने सामने विद्यमान हूँ।

कभी किसी तो किसी विचारधारा का
मुखौटा लिये
मैं खुद से ही लोहा ले रहा हूँ
मैं समय के किसी और भाग के
अपने आप से मुखातिब हूँ,
और एक-दूसरे की हालत पर
मेरे दोनों रूप सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं
और खुद को ही झुठला रहे हैं।

वह जो एक पतली सी परत थी
किन्हीं मतभेदों की
जो कि मुझको मेरे सामने के किसी और रूप से
मुझको अलग करती थी
मैंने भेद ली है,
और उस शख्स में
मैंने खुद को ढूँढ़ लिया है,
और उसको मेरे मन से गुजरने का न्यौता भी दिया है।

किसी क्षण में तल्लीन
विलीन होकर मेरे रूप आपस में उलझ रहे हैं,
लेकिन वह सब मैं ही हूँ
मेरे सामने अब मुझसे अलग कोई नहीं है। 

Jan 16, 2017

अदीब - 2 / हम्पी - 1 / खण्डहर

खण्डहर ऐसे ही थोड़े बनते हैं
एक मज़बूत इमारत ऐसे ही थोड़े ग़ायब हो जाती है,

तथ्यों की एक-एक ईंट जोड़कर
उसने एक मज़बूत नींव बनायी होगी
तमाम भट्ठों की
अच्छी से अच्छी, जाँची-परखी हुई तथ्यों की ईंटें
जिन्हें बनाने में किन्हीं कारीगरों ने
सैकड़ों साल लगा दिए होंगे,
फिर उस नींव को
मुख्यधारा रूपी ज़मीन के नीचे
दबाया होगा
और विचारों की इमारत खड़ी की होगी
पहली बार में अगर अच्छे से न बना हो
तो उसने लच्छेदार भाषा का लेप भी लगाया होगा
आने-जाने वाले लोगों ने
उस इमारत की बहुत तारीफ की थी,

लेकिन विचारों की बस इमारतें ही नहीं होती हैं
विचारों की आँधियाँ भी होती हैं
चिन्तन के उच्च दबाव वाले क्षेत्रों से उठने वाली ये आँधियाँ
रास्ते में आने वाली विचारों की इमारतों को
धराशायी कर देती हैं,
तमाम आंदोलनों की, तमाम वादों* की ये आँधियाँ,
उसकी भी इमारत बच नहीं पायी थी
नींव अभी भी बची थी
तबाही की दास्ताँ सुनाने के लिए,
मजबूत थी या शायद ओझल थी,

ऐसी इमारतें हर रोज़ कहीं पनपती हैं
और खण्डहर बनकर रह जाती हैं,
शायद तुमने भी दो पैरों पर
चलते-फिरते खण्डहर देखे होंगे, अदीब?

*(वाद - ism)