मौसम-ए-गुल में छोड़कर जा रहा हूँ जान-ए-फ़िज़ा
कल और आएंगे गुलों के क़द्रदान चमन में मेरे बाद।

मैं जुर्म-ए-उल्फत का गुनहगार हूँ मैं यह मानता हूँ
कौन कहता है कि अमन आ जायेगा यहाँ मेरे बाद।

तुम्हारी तस्वीर जो मैंने तसव्वुर से खींची हैं
आईने के सामने बैठकर मिला लेना मेरे बाद।

मेरे सामने आकर तुम्हारा शर्माना चलता रहेगा
मैं पूँछ लूँगा तुम चाँद से सब कह देना मेरे बाद।

शिर्क़ जैसा गुनाह किया है तुम्हारी इबादत करके
रुस्वा किया जायेगा मुझे क़ाफ़िर कहकर मेरे बाद।

वही सबा वही फ़िज़ा वही उजाले वही अँधेरे होंगे
चार सू देखना कुछ भी नहीं बदलेगा मेरे बाद।

है मक़ाम-ए-इश्क़ क्या यायावर और क्या हासिल
वो सब सोचेगा कभी फुरसत में लेकिन मेरे बाद।

तसव्वुर-Imagination; शिर्क़-Polytheism;